मेरे दायरे में | प्रतिभा चौहान
मेरे दायरे में | प्रतिभा चौहान

मेरे दायरे में | प्रतिभा चौहान

मेरे दायरे में | प्रतिभा चौहान

मेरे दायरे में 
सूरज की रोशनी 
मेरे दायरे में 
चाँद की शीतलता 
मेरे दायरे में 
शब्दों की ठिठोली 
मेरे दायरे में 
अथाह समंदर 
मेरे दायरे में 
लहलहाती किसानों की मेहनत 
मेरे दायरे में रात दिन का होना…

उठाती हूँ कलम 
तो रात सिमट जाती है स्याही सी, बोतल में 
चाहती हूँ लिखना धरा के गीत 
चिड़ियों की चहचहाहट 
बादलों का भारी आँचल 
समुंदर की परियों के रंग 
कोंपलों के नृत्य 
लहरों की झंकार

पर ! 
लिख जाता है 
फूलों का जलना 
पहाड़ों का गिरना 
झरनों का जम जाना 
पेड़ों का उखड़ना 
दिलों की उबासी

मानवता की बिलबिलाती पीठ 
और उन जख्मों से रिसता लहू 
व्यथा-वेदना…

तुमने जरूर मिट्टी के लोंदों से 
कुछ विनाश की पुतलियाँ तैयार की हैं 
जो धरा की ग़जल को शोकगीत में परिवर्तित करने की साजिश रच रही हैं।

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