मौज़ूदगी | आस्तिक वाजपेयी
मौज़ूदगी | आस्तिक वाजपेयी

मौज़ूदगी | आस्तिक वाजपेयी

मौज़ूदगी | आस्तिक वाजपेयी

जब चंद्रमा की आहट
आसमान में होती,
चिड़ियों के शोर और
पत्तियों की सरसराहट के बीच,
हम तालाब के किनारे
अब फिर टहल रहे हैं।
अब पता चला,
इस समय की मौजूदगी
के लिए हमारी नामौजूदगी
जरूरी थी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *