मानव-बम | ज्ञानेन्द्रपति
मानव-बम | ज्ञानेन्द्रपति

मानव-बम | ज्ञानेन्द्रपति

मानव-बम | ज्ञानेन्द्रपति

सुतली-बम से लेकर
ट्रांजिस्टर बम तक
कितनी तरह के बम फटे थे
मानव-बमों के फटने से पहले
जनसभाओं में जनपथों पर

सुतली बम के लिए देह-भर सुतली
मिल सकती थी किसी किराने की दुकान पर
कुंडली बाँधे लटकती कोने में, दंश-दृढ़
ट्रांजिस्टर बम के लिए
खोल-भर ट्रांजिस्टर मिल सकता था
चावड़ी मार्केट में या ठठेरी बाजार में थोक-का-थोक
और गुड़िया-बमों के लिए प्लास्टिक की गुड़ियाएँ
चाहे जितनी
किसी भी खिलौनों की दुकान पर

मानव-बम के लिए
जिस माँ-कोख ने जाया है
कोंपल-कोमल शिशु-तन
उसने तो बिकाऊ नहीं ठहराया है उसे
कितने भी ऊँचे दामों

किस माँ-गली से खरीद लाए हैं वे
बम का खोल बनाने मानव-तन कि मानव-मन
भावनाओं की अनगिन उमगती कोंपलोंवाला
सद्यःप्रस्फुटित किसी विचार से महमहाता
मानव-मन
विकासी प्रकृति का परम
वर्द्धमान जीवन का चरम
मानव-मन
जिसकी ब्रेन-वाशिंग कर
बहुविध उपायों से
कभी किसी पवित्र पृथुल ग्रंथ के हवाले से
कभी किसी गोपनीय गुटका किताब के बल पर
कभी किसी महान उद्देश्य की बारूद भर
कभी… ओह! इस या उस तरह
बनाए जा रहे हैं मानव बम
तैयार किए जा रहे हैं सुसाइड-स्क्वैड – आत्मघाती दस्ते
किन्ही सत्तालोलुप सेनानायकों के हित

और असीसती माँएँ कलपती रह जाती हैं
उसके लिए जो उनका ही पसार था
कि जिसके पंख अभी पसरे ही थे आकाश में

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *