लिंफएडिमा | आर अनुराधा
लिंफएडिमा | आर अनुराधा

लिंफएडिमा | आर अनुराधा

लिंफएडिमा | आर अनुराधा

जब दर्द एक घर देख ले
और उसी में रहना चाहे
उसे नींद आए तो
उसी में सोना चाहे
पसार कर अपने अदृश्य टेंटाक्ल्स
न्यूरॉन्स का सिरहाना बनाकर
वही होता है लिंफएडीमा
जब लिंफ प्रणाली में हो जाए कुछ खराबी
जैसे कि कैंसर
परिपथ का नल तो चलता रहे
पर डॉक्टर निकाल दे उसकी टोंटी सर्जरी में
लिंफेटिक द्रव का आने का रास्ता तो खुला हो बदस्तूर
पर जाने का कोई रास्ता नहीं
नल बंद करने का कोई रास्ता नहीं
तब जमा होता जाता है लिंफ शरीर में
बाजू में या पैर में
और उस दैहिक द्रव में सड़ता है देह का वह हिस्सा
उसी द्रव में, देह की रक्षा जिसका कर्तव्य ठहरा
वही होता है लिंफएडीमा
मास्टेक्टोमी देह से कोई आधा किलो बोझ
हटा देती है
मगर बढ़ा देती है बाँह में बोझ
उसी द्रव का,
कीटाणुओं का लोड कम करना जिसका कर्तव्य ठहरा
बोझ जब झिलाता है सालों-साल
खींचता है बाँह को, कंधे को
एक ओर,
संतुलन बिगाड़कर
बोझ खींचता है दर्द को
और दर्द चीथता है देह को
मन इससे अलग कभी रहता है, कभी नहीं
कभी जूझता है, कभी नहीं
हर चीज का आदी होना
क्या कोई आदत होती है?
पता नहीं मेरी जान!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *