हम जो एकांत में होते हैं, वही हैं | विमल चंद्र पांडेय
हम जो एकांत में होते हैं, वही हैं | विमल चंद्र पांडेय

हम जो एकांत में होते हैं, वही हैं | विमल चंद्र पांडेय

हम जो एकांत में होते हैं, वही हैं | विमल चंद्र पांडेय

रात के दो बजे अचानक चाय की तलाश में टहलने निकले
सड़कें, गलियाँ, रात, सब सुनसान
हमेशा भीड़ भरे उस संगमरमरी फर्श को सुनसान पाकर थूका था तुमने
उस हीरोइन के पोस्टर में जाकर तुमने दबाए थे उसके स्तन
और नोच कर फेंक दिए थे नेताओं के हाथ जोड़ते विज्ञापन

जब हमें कोई नहीं देख रहा होता है
हमारा असली किरदार बाहर आकर चिल्लाता है गहरी उत्तेजना से

किसी के बारे में हमारे असली विचार वही हैं
जो हम उसकी पीठ पीछे बिखेरते हैं और उड़ा देते हैं धज्जियाँ

मैं तुम्हें औरतों की इज्जत करने वाला समझता था दोस्त !
जब तक शराब पीकर टेरेस पर उस दिन तुमने नहीं दी थीं
दुनिया की सारी औरतों को गंदी गालियाँ
मैं कोई स्त्रीवादी नहीं हूँ लेकिन मेरी माँ एक औरत है
इसलिए तुम्हें वहाँ से धकेल देने से बचने के लिए जरूरी था एक तमाचा
बड़े हादसे टालने के लिए कई बार जरूरी होती है त्वरित प्रतिक्रिया

सिगरेट में कहाँ छिपी होती है मौत
शराब में कहाँ घुली होती हैं गालियाँ
हथेलियों को जोड़ने में कैसे घुसता है उनके बीच आदरभाव
कैसे निकालेंगे एक दूसरे में घुली-मिली छिपी चीजें
तुम्हारी हँसी की यादों में किधर छिपी है मेरी असाध्य बीमारी
मेरे जीवन के रिसते जाने का राज

अकेलेपन को लेकर ही सबसे ज्यादा सवाल रहे हैं मन में
फिल्मी कलाकार क्या सोचते होंगे एकांत में
क्या वे भी याद करते होंगे अपने बचपन के दोस्त का उधार
उसे चुकाने के बारे में
क्या सोचते होंगे प्रधानमंत्री अगर अकेले हुए कभी
उन्हें अपने खाली बिना दबाव के पुराने दिन बुलाते होंगे क्या
क्या सोचा होगा अपने आखिरी एकांत में भगत सिंह ने
हत्था खींचे जाने के ठीक पहले
उन्हें अंदाजा होगा कि उनके जाने के बाद कागजों पर ही होंगी ज्यादातर क्रांतियाँ
क्या सोचा होगा गांधी ने गोली खाने के बाद
सिर्फ नोट पर रह जाने जैसी भयानक बात का उन्हें अंदाजा होगा क्या
सलीब पर ठोके जाने के बाद ईशु क्या सोच रहे होंगे अपने भीतर के एकांत में
अपने हत्यारों के लिए किस मन से की होगी उन्होंने माफ किए जाने की प्रार्थना

रात में कितने अपने लगते हैं खाली पार्क
दिन में ट्रैफिक जाम से जूझती सड़कें, सन्नाटे में अश्लील सी
अपने होने का अर्थ पूछती
तुम्हें पेशाब लगी और सामने नाली होने के बावजूद
हँसते हुए चले गए तुम दस कदम आगे रसूल मियाँ के घर के दरवाजे पर

हम जो एकांत में होते हैं
वहीं हैं दरअसल पूरी तरह
अच्छे, बुरे, गलत, सही
लेकिन वही, बिल्कुल वही

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