बीते हुए दिन | प्रतिभा गोटीवाले
बीते हुए दिन | प्रतिभा गोटीवाले

बीते हुए दिन | प्रतिभा गोटीवाले

बीते हुए दिन | प्रतिभा गोटीवाले

कई बार होता है 
कि समय की नदी में 
बहते बहते 
कुछ पुराने दिन 
छुप जाते हैं 
समय की नजर बचा 
लम्हों की सीपियों में, शंखों में… 
या अटक जाते हैं 
यादों की झाड़ियों में, 
कुछ बनकर रेत 
जमने लगते हैं किनारों पर 
और फिर कभी किसी दिन 
जब तुम टहलने निकलते हो 
इस रेत पर 
तो अकस्मात मिलते है खजाने 
शंखों के, सीपियों के… 
हाथों में लेते ही 
इनमें दुबके हुए पुराने दिन 
निकल आते हैं बाहर 
या झरते हैं झाड़ियों से… 
बनकर फूल 
और तुम जी आते हो 
बहुत पुराना… 
एक बीता हुआ दिन।

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