बँधुआ मुक्त हुआ कोई | आरसी चौहान
बँधुआ मुक्त हुआ कोई | आरसी चौहान

बँधुआ मुक्त हुआ कोई | आरसी चौहान

बँधुआ मुक्त हुआ कोई | आरसी चौहान

किसान के जहन से 
अब दफन हो चुकी है 
अतीत की कब्र में 
दो बैलों की जोड़ी 
वह भोर ही उठता है 
नाँद में सानी-पानी की जगह 
अपने ट्रैक्टर में नाप कर डालता है 
तेल 
धुल-पोंछ कर दिखाता है अगरबत्ती 
ठोक-ठठाकर देखता है टायरों में 
अपने बैलों के खुर 
हैंडिल में सींग 
व उसके हेडलाइट में 
आँख गडा़कर झाँकता 
बहुत देर तक 
जो धीरे-धीरे पूरे बैल की आकृति मे 
बदल रहा है 
समय – 
खेत जोतते ट्रैक्टर के पीछे-पीछे 
दौड़ रहा है 
कठोर से कठोर परतें टूट रही हैं 
सोंधी महक उठी है मिट्टी में 
जैसे कहीं 
एक बँधुआ मुक्त 
हुआ हो कोई।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *