बड़े लेखक | विमल चंद्र पांडेय
बड़े लेखक | विमल चंद्र पांडेय

बड़े लेखक | विमल चंद्र पांडेय

बड़े लेखक | विमल चंद्र पांडेय

जरूरी नहीं कि बड़े लेखकों की उम्र बड़ी हो
और वे दिल्ली में ही रहते हों
उनकी ख्याति और प्रतिभा में कोई सीधा संबंध आपको समझ में आए
यह भी कोई निश्चित शर्त नहीं है

बड़े लेखक सिर्फ बड़े होते हैं
और कुछ नहीं
वे अक्सर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं
गंभीर रहते हैं और दिल खोलकर प्रायः नहीं हँसते
हँसना उनके लिए अक्सर एक घटना की तरह होता है
वे जिस बात पर हँसते हैं
चाहते हैं कि उसे सदी का सबसे हास्यास्पद चुटकुला माना जाए

बड़े लेखक जो किताबें पढ़ते हैं, फि़ल्में देखते हैं और जो संगीत सुनते हैं
उन किताबों और सीडियों की सिर्फ एक प्रति तैयार कराई गई होती हैं
जिसे वे पढ़ते, देखते या सुनते हैं और आपसे एक राज की बात की तरह बाँटते हैं
अगर आप उनमें से एक भी किताब या फि़ल्म से पहले से परिचित हुए
तो बड़े लेखक उसे पायरेटेड वर्जन मानते हैं
उन्हें बड़ी निराशा होती हैवे अगली बार ऐसी बात कहना चाहते हैं जिसे उनके पहले कभी किसी ने न कहा हो
ऐसी चीज देखना चाह हैं जिसे उनके पहले किसी ने देखा हो

बड़े लेखक आपसे मुखातिब होते हुए भी
किसी अदृश्य पत्रकार से मुखातिब होते हैं
उनकी इच्छा होती है कि उनकी कही एक भी बात व्यर्थ न जाय
और उस पर आधारित जो खबर या रिपोर्ट तैयार हो
उसमें उनकी एक गंभीर मुद्रा वाली तस्वीर प्रकाशित हो
इसके लिए वे अक्सर कई फोटोजेनिक मुद्राओं में आपकी ओर देखते हुए भी
देखते हैं कहीं और शून्य में
उन्हें आसमान में देखता हुआ पोज पसंद होता है

बड़े लेखकों के बहुत सारे दोस्त होते हैं
लेकिन वे किसी के दोस्त नहीं होते
ताकि उनकी बातों का कोई अनावश्यक लाभ न उठा सके
वे दूसरों की रचनाओं की कमियाँ बताते हुए मुस्कराते हैं
अपनी रचनाओं की कमियाँ बताए जाने पर
वे इसे फिर से अपना दायरा बढ़ाकर पढ़े जाने की सलाह देते हैं
अपने बचपन के दोस्तों के समूह में बड़े लेखक कुछ इस तरह बैठते हैं
मानो सभी फटीचर दोस्तों को एक प्रसिद्ध हस्ती की बातों को सुनने का मौका दे रहे हों
वे इसका एहसान भी नहीं जताते और इस तरह अपनी दोस्ती का हक अदा करते हैं

बड़े लेखक कहानियों और अपने लेखन से इतर कुछ सोचना नहीं चाहते
वे सोचते भी हैं तो अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर
दाल और प्याज की बढ़ती कीमतों के बारे में बात करना उन्हें अपनी रचनात्मकता का अपमान लगता है
वे हर जगह क्रांति करना चाहते हैं
इसलिए और कुछ नहीं तो इसके बारे में बात करते रहने की कोशिश करते हैं
हालाँकि उन्हें भी दिन में दो या तीन बार भूख लगती है
खाने में उन्हें हमेशा अच्छा ही चाहिए होता है ताकि उनकी रचनात्मकता को ऊर्जा अनवरत मिलती रहे
और वे साहित्य को एक से बढ़कर एक अमर रचनाएँ देते रहें

बड़े लेखक अक्सर अपनी पत्नियों को मूर्ख समझते हैं
अपने मित्रों के सामने उन पर चुटकुले सुनाते हैं
अकेले में उन्हें ढंग से कपड़े न पहनने और मेहमानों से पटर-पटर बात करने पर डाँट पिलाते हैं
उन्हें अपनी पत्नी और अपने माता-पिता से बहुत सारी समस्याएँ होती हैं
हालाँकि वे अपनी किताबों में स्त्रियों की मुखरता के पक्ष में मुखर दिखते हैं
वे बहुत सारी जिम्मेदारियों से यह कह कह पल्ला झाड़ते हैं
कि उनके आसपास रहने वाले सभी जाहिल हैं

बड़े लेखकों के अनुसार वे सदी की सबसे बड़ी प्रतिभा होते हुए भी
अपने समय के सबसे उपेक्षित प्राणी होते हैं
सभी आलोचकों ने उनकी उपेक्षा की होती है
सभी लेखकों ने उनके खिलाफ गुटबंदी की होती हैं
वे दुखी स्वर में कहते हैं कि उनके जाने के बाद उनका महत्व समझा जाएगा

बड़े लेखकों के मंसूबे बड़े होते हैं
वे जब रात को अपने कमरे में अकेले होते हैं
तो अगले पिछले सभी लेखकों के नामों की सूची पर एक नजर दौड़ाते हैं
वे पाते हैं कि वे अब तक के सबसे प्रतिभाशाली लेखक हैं
इसके बाद वे दिन की आखिरी मुस्कराहट मुस्कराते हैं
बिस्तर पर आकर सो जाते हैं और सदी के सबसे सुंदर स्वप्न देखते हैं

इतनी बातों को जानने के बाद
अगर आप ये भी जानना चाहें कि बड़े लेखक लिखते कब हैं
तो बकौल मोहन राकेश ‘लिखते वे अगले दिन हैं’

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