अनुपस्थिति | कुमार अनुपम यहाँतुम नहीं हो तुम्हारी अनुपस्थिति के बराबरसूनापन है विचित्र आवाजों से सराबोरधान की हरी हरी आभाऔर महक हैमानसून की पहली फुहार की छुवनऔर रस है तुम नहीं हो यहाँतुम्हारी अनुपस्थिति है