मैंने चुना प्रेम | प्रतिभा कटियारी
मैंने चुना प्रेम | प्रतिभा कटियारी

मैंने चुना प्रेम | प्रतिभा कटियारी

मैंने चुना प्रेम | प्रतिभा कटियारी

जानती थी
क्या होती है प्रतीक्षा,
कैसा होता है दुख
अवसाद, अँधेरा,
किस कदर
मूक कर जाता है
किसी उम्मीद का टूटना,
फिर भी
मैंने चुना प्रेम!
न आवाज कोई, न इंतजार
वैसे, इतना बुरा भी नहीं
फासलों के बीच
प्रेम को उगने देना
अनकहे को सुनना,
अनदिखे को देखना
फासलों के बीच भटकना
आवाजों के मोल चुकाने की ताकत
अब नहीं है मुझमें
न शब्दों के जंगल में भटकने की
न ताकत है दूर जाने की
न पास आने की
बस एक आदत है
साँस लेने की और
तीन अक्षरों की त्रिवेणी
में रच-बस जाने की
तुम्हारे नाम के वे तीन अक्षर…

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *