फूल, तुम खिल कर झरोगे | त्रिलोचन
फूल, तुम खिल कर झरोगे | त्रिलोचन

क्या करोगे
शून्य प्राणों
को भरोगे

पथ कहाँ, वन
जटिल तरु-घन,
हरा कंटक –
भरा निर्जन
खेद मन का
क्या हरोगे

हवा डोली
घास बोली
आज मैंने
गाँठ खोली
फूल, तुम खिल –
कर झरोगे

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *