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दो चिट्ठियाँ

मैं गली से जा रहा था कि उनके घर के सामने से निकलते ही ताई इंदू की अंदर से आवाज आई : ‘ओ काका संतोख सियान! इस चिट्ठी को जरा बता तो दे!’ ‘ला ताई!’ मैंने कहा। ताई ने खुशी-खुशी दरवाजे पर आकर मुझे खत पकड़ाया। ‘अमर की लगती है?’ मैं दरवाजे पर खड़ा-खड़ा लिफाफे […]