किताब | गायत्रीबाला पंडा किताब | गायत्रीबाला पंडा एक किताब की तरहस्वयं को खोले और बंद करेपुरुष की मर्जी पर। एक किताब की तरहउसके हर पन्ने परआँखें तैराता पुरुषजहाँ मन वहाँ रुकतातन्न तन्न कर पढ़ता। विभोर और क्लांत हो, तो हटा देताएक कोने में। खर्राटे भरतातृप्ति में।
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आदिवासी | गायत्रीबाला पंडा
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