किताब | गायत्रीबाला पंडा

किताब | गायत्रीबाला पंडा

किताब | गायत्रीबाला पंडा किताब | गायत्रीबाला पंडा एक किताब की तरहस्वयं को खोले और बंद करेपुरुष की मर्जी पर। एक किताब की तरहउसके हर पन्ने परआँखें तैराता पुरुषजहाँ मन वहाँ रुकतातन्न तन्न कर पढ़ता। विभोर और क्लांत हो, तो हटा देताएक कोने में। खर्राटे भरतातृप्ति में।

आदिवासी | गायत्रीबाला पंडा

आदिवासी | गायत्रीबाला पंडा

आदिवासी | गायत्रीबाला पंडा आदिवासी | गायत्रीबाला पंडा तुम्हारे सिर पर फरफरपताका उड़ते समयधरती पर खड़े होक्या सोचते हो तुमदेश के बारे में! फरफर पताका उड़नाहो कोई नाम, उत्सव काजैसे छब्बीस जनवरीया पंद्रह अगस्ततुम जो समझते स्वाधीनता का अर्थअर्थ गणतंत्र काहम नहीं समझते, समझ नहीं पाते। इतना मान होता तब तो!झुक कर साल के पत्तेचुगते … Read more

अँगूठा छाप | गायत्रीबाला पंडा

अँगूठा छाप | गायत्रीबाला पंडा

अँगूठा छाप | गायत्रीबाला पंडा अँगूठा छाप | गायत्रीबाला पंडा आँख की पलकों में दबेमर्मांतक कोह में से निकलताकाकुस्थ और विचलित,नहीं जानतीनक्सल की गोली से मृत पति कोकितने मिले हर्जाने केकागजों में स्वीकारोक्ति पाँच लाख प्राप्तिले चुकी सरकार। अँगूठे से छूट रहा स्याही का रंगबस्ते से चावलपड़ोसी के मन से संवेदनाबच्चों के खाली पेट मेंनाचते … Read more