जीका वायरस
यह संक्रमित मच्छर एडीज एजिप्टी के काटने से फैलता है । ये चिकनगुनिया व डेंगु भी फैलाते हैं । जीका वायरस फ्लेविरिडी कुल से संबधित है । ये दिन के समय सक्रिय रहते हैं । इसे जीका बुखार या जीका बीमारी कहते हैं
जीका वायरस इतिहास
- यह वायरस सबसे पहले 1947 में युगांडा में पाया गया था जो कि एडीज एजिप्टी के काटने से फैलता है ।
- जीका रोग अफ्रीका के कई हिस्सों में महामारी की तरह फैल गया । इसके बाद दक्षिण प्रशांत व अमेरिका में फैल गया ।
- वर्ष 1947 में पीले बुखार का शोध कर रहे अफ्रीका वैज्ञानिक जीका के जंगलो में रीसस मकाक ( लंगूर ) को पिंजरे में बंद कर अपना शोध कर रहे थे । उस बंदर को बुखार हो जाता था ।
- 1952 में इसके संक्रामक घटक को जीका विषाणु बताया गया था ।
- 1954 में नाइजीरिया में एक मनुष्य से यह वायरस निकाला गया था ।
- 2016 में यह वायरस ब्राजील व भारत में भी पाया गया था ।
- 2017 में इस वायरस के अहमदाबाद में भी 3 रोगी पाये गये थे ।
- मई 2017 में गुजरात के अहमदाबाद में एक गर्भवती महिला में जीका वायरस की पुष्टि हुई है ।
INCUBATION PERIOD – 7DAYS
इस वायरस के काटने से 8 से 10 दिनों के बाद ” लक्षण दिखाई देने लगते हैं जीका वायरस आमतौर पर लगभग 1 सप्ताह के लिए संक्रमित व्यक्ति के रक्त में रहता है । जीका वायरस मुख्य रूप से मच्छरों के माध्यम से फैलता है लेकिन यह यौन संचारित भी हो सकता है ।
जीका वायरस के लक्षण :
- आंखों का लाल व सिर दर्द होना ।
- जोड़ों में दर्द और बुखार का होना ।
- सर्दी का लगना और शरीर में लाल रंग के चकतों का दिखना ।
- खुजली और हाथ व पैरों में सूजन का आना ।
- बच्चे को सिर छोटा और दिमाग का अविकसित रह जाना ।
- बच्चे को पैरालाइसिस हो जाना ।
- नवजात शिशुओं में अंधापन व बहरापन व दौरे आना ।
जीका वायरस से खतरा
- Pregnancy में जीका वायरस से बच्चे पर सीधा । असर जो कि Microcephaly कहलाता है इसमें । बच्चे का दिमाग अविकसित रह जाता है इससे Guillain – Berre Syndrome होने की आशंका हो जाती है जो कि दुर्लभ Neurological disorder है इससे बच्चे में Paralysis की आशंका हो जाती है ।
- जीका वायरस का गर्भवती महिला से अपने भ्रण तक भी जा सकता है ।
_ _ AYURVEDIC SYMPTOMS
- बुखार
- आंख का आना
- शिरः शूल
- जोड़ों में दर्
- द पूरे शरीर में दर्द
- त्वचा में एलर्जी
जीका वायरस से बचाव
- मच्छर भगाने वाले उत्पादों का इस्तेमाल।
- पानी को जमा होने से रोकें ।
- शरीर को पूरा ढकने वाले कपडे पहनें ।
- एयर कंडीशन वाले स्थानो पर रहें ।
आयुर्वेदिक चिकित्सा
- संजीवन वटी – 4 गोली दिन में दो बार , भोजनोतर
- गिलोय घन वटी -2 गोली दिन में दो बार , भोजनोतर .
- कुटज , पटोल , कुटकी , सारिवा , नागरमोथा , पाठा , नीम , त्रिफला , मुनक्का , चिरायता , गिलोय , चन्दन , शुण्ठी , हरिद्रा ।
- इन सभी द्रव्यों का क्वाथ बनाकर मिश्री स्वादानुसार मिलाकर दिन में तीन बार पीना चाहिये ।
- गिलोय रस , पपीते के पत्ते का स्वरस , एलोवीरा रस , तुलसी का रस सुबह शाम मिश्री स्वादानुसार मिलाकर पीयें ।
- सरसों के तेल में लहसुन की कलियाँ डालकर उबालकर छानकर जोडों के दर्द पर हल्की मालिश करें ।
- हल्के व्यायाम करें व विटामिन सी युक्त फल खायें ।
- सुर्य के प्रकाश में ज्यादा देर ना रहें ।