जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े | प्रकाश उदय
जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े | प्रकाश उदय
आवत बाटे सावन, शुरू होई नहवावन
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े
एगो लांगा लेखा देह, राखे राखे में लपेट
लोग धो-धा के उधारे प परल बाड़े
एने बरखा के मारे, गंगा मारें धारे-धारे
जट पावें ना सम्हारे, होत जाले जा किनारे
”सिव-सिव हो दोहाई
मुँह मारीं सेवकाई”
उहो देबे प रिजाइने अड़ल बाड़े
बाटे बड़ी-बड़ी फेर, बाकी सबका से ढेर
हई कलसा के छेद, देखऽ टपकल फेर
”गउरा, धउरऽ हो दोहाई…”
आ त- ”ढेर ना चोन्हाईं-
अभी छोटका के धोए के धयल बाटे
– ”बाड़ू बड़ी गिर्हिथिन, खाली लइके के फिकिर”
– ”बाड़ऽ बापे बड़ी नीक, खाली अपने जिकिर”
– ”बाड़ पथरे के बेटी”
– ”बाटे जहरे नरेटी”
बात बाते-घाते बढ़त बड़ल बाटे
सुनि बगल के हल्ला, ज्ञानवापी में से अल्ला
पूछें – ”भइल का ए भोला, महकइलऽ जा महल्ला
एगो माइक बाटे माथे
एगो तहनी का साथे
भाँग बूट-गाँजा फेरू का घटल बाटे”
दूनो जाना के भेंटाइल, माने दुख दोहराइल
ई नहाने नकुआइल, ऊ अजाने अँउजाइल
इनके लागेला सोमार
उनके जुम्मा के बोखार
दुख कहले सुनल से घटल बाटे
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े