सायलेंट अल्फाबेट्स | कुमार अनुपम उनके पास अपनी ध्वनि थी अपनी बोली थी फिर भी गूँगे थे वे स्वीकार था उन्हें अपने स्वर का तिरस्कार इसलिए वे अंग्रेजी के अरण्य में रहते थे