युग | ओसिप मांदेल्श्ताम
युग | ओसिप मांदेल्श्ताम

युग | ओसिप मांदेल्श्ताम

युग | ओसिप मांदेल्श्ताम

ओ मेरे युग, मेरे बनैले पशु,
तेरी पुतलियों में झाँकने का
किसमें इतना साहस
जो जोड़े अपने खून से
दो शताब्दियों की रीढ़ को?
सर्जक-रक्‍त बह रहा है वेग से
सांसारिक चीजों के कंठ से
नये समय की देहरी पर
ये परजीवी प्राणी हैं जो थरथरा रहे हैं।

जीवन जब तक शेष है
उसे उठाते रहनी होगी अपनी रीढ़
इसी अदृश्‍य रीढ़ के साथ
खेल रही हैं लहरें आज
शिशुओं की हड्डियों की तरह
पृथ्‍वी पर नाजुक है हमारा यह समय
हिरण के बच्‍चे की तरह
बलि के लिए लाया जा रहा है जीवन।

अपने युग को कैद से मुक्‍त कराने के लिए
शुरू करने के लिए एक नई जिंदगी
गाँठों से भरे दिनों के घुटनों को
बाँधना होगा बाँसुरी की मदद से।
यह युग है जो लहरों को
हिलाता है मनुष्‍य के अवसाद से
समय के सुनहले मानदण्‍डों की तरह
घास के नीचे साँस ले रहे हैं साँप।

और भी फूटेंगे अंखुए
हरे फव्‍वारे की तरह
पर टूट गई है तेरी रीढ़
ओ मेरे सुंदर दयनीय युग!
पुन: देखने लगा है तू निर्मम, अशक्‍त
अपनी अर्थहीन मुस्‍कराहट से
बनैले पशु की-सी लचक लिए
अपने ही पंजों की छाप।
सर्जक-रक्‍त बह राह है वेग से
सांसारिक चीजों के गले से
और जलती मछलियों की तरह
तट पर फेंक रहा है समुद्र की हड्डियाँ,
ऊपर पक्षियों के जाल
और ढेलों की आर्द्रता
टपक रही है उदासीनता
तेरे प्राणांतक घावों पर।

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