यशोदा | मंजूषा मन
यशोदा | मंजूषा मन

यशोदा | मंजूषा मन

यशोदा | मंजूषा मन

मेरे घर
मासिक वेतन पर आई
एक आया
धीरे-धीरे यशोदा बन जाती है…
मैं बनी रह गई
देवकी…
कभी परिवार की जरूरत
कभी सपनों की उड़ान
तो कभी मजबूरी की
मोटी-मोटी साँकलों में
जकड़ी रही…
मैं
किसी सूरत तोड़ न पाई
अपना कारागार
समय का कंस
जकड़े रहा मुझे…

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