व्यवस्था | आभा बोधिसत्व
व्यवस्था | आभा बोधिसत्व
अमरूद नहीं हूँ कि
खा ले कोई जब मन करे तब
बेवजह-बेमौसम
अगर गलती से यह हो भी तब
कुर्सी पर बैठे मंत्री जी
खड़े हुए संत्री जी,
चौके में बैठी अम्मा जी
सड़कों पर घूमते भाई जी
नफरत और प्रेम के पशोपेश का
झोला लिए मुझसे मोर्चा लिए पिता
को दुनिया के हर रिश्ते को
देना होगा जवाब
इस अपच व्यवस्था से
निपटने की व्यवस्था
में रहने को संतुष्ट जहाँ
स्त्री रह सके गह सके इत्मिनान
अपनी बात साफ वही जो कही
उसने वहीं सु्नी जाए परिभाषा…