वो प्रेतात्माएँ नहीं थीं | असीमा भट्ट
वो प्रेतात्माएँ नहीं थीं | असीमा भट्ट

वो प्रेतात्माएँ नहीं थीं | असीमा भट्ट

वो प्रेतात्माएँ नहीं थीं | असीमा भट्ट

वो प्रेतात्माएँ नहीं थीं
वो प्रेमिकाएँ थीं
वो खिलना जानती थीं फूलों की तरह
महकना जानती थीं खुशबू की तरह
बिखरना जानती थीं हवाओं की तरह
बहना जानती थीं झरनो की तरह
उनमें भी सात रंग थे इंद्रधनुषी
उनमें सात सुर थे
उनकी पाजेब में थी झनकार
वो थीं धरती पर भेजी गई हव्वा की पाकीजा बेटियाँ
जिन्हें और कुछ नहीं आता था सिवाय प्यार करने के
वो बार बार करती थीं प्यार
असफल होती थीं
टूटती थीं
बिखरती थीं
फिर सम्हलती थीं
जैसे कुकनूस पक्षी अपनी ही राख से फिर फिर जी उठता है
फिर प्यार करती थीं
उसी शिद्दत से और उसी जुनून से
दिल ओ जान लुटाना जानती थीं अपने प्रेमियों पर
दे देना चाहती थीं उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ
बचा लेना चाहती थीं दुनिया की हर बुरी नजर से
कोई भी बला आये तो पहले हमसे होकर गुजरे
अपने रेशमी आँचल को बना देती थीं अपने प्रेमियों का सुरक्षा कवच
बन जाती थीं उनके लिए नजरबट्टू लगा कर आँखों में मोटे मोटे काजल
उनके लिए बुनती थीं स्वेटर और सपने दोनों
गुनगुनाती रहती थीं हर वक्त अपने अपने प्रेमी की याद में
खोई खोई अनमनी
अपनी ही धुन में
न किसी का डर
न दुनिया की परवाह
करती थीं रात रात भर रतजगा
और
ऊपर से कहती थी – ख्वाब में आके मिल
उनींदी आँखें लाल होती हैं असफल प्रेमिकाओं की
जैसे रात भर किसी जोगी ने रमाई हो धूनी

असफल प्रेमिकाएँ करती हैं व्रत, रखती है उपवास
बाँधती हैं मन्नत का धागा
लगाती हैं मंदिरों और मजारों के चक्कर
देती हैं भिखारियों को भीख और मांगती हैं दुआँ  में अपने प्यार की भीख
‘मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए’  कहते हुए गाती थी
‘हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक’
वो भूल जातीं दिन, महीने और तारीख
भूल जातीं खाना खाना
बेख्याली में कई बार पहन लेतीं उलटे कपड़े
लोग कहते –  कमली है तू
और वो खुद पर जोर जोर से हँसतीं
बहाने बनातीं
जल्दी में थी
कमरे में अँधेरा था
क्या करती, ठीक से दिखा ही नहीं

असफल प्रेमिकाएँ बचाए रखती हैं हर हाल में अपना विश्वास
बचाए रखती हैं अपने प्रेमी के प्रेमपत्र और उनकी तस्वीरें
गीता और कुरआन की तरह

असफल प्रेमिकाएँ जब जब रातों को अकेली घबरा जाती हैं,
रोती हैं तकिए में मुँह रख कर
सोचती
नितांत एकांत रात में
सन्नाटे को चीरती हुई
उनकी चीत्कार जरूर पहुँचती होगी उनके प्रेमी के कानों में

वो अच्छा हो,  वो भला हो
सब ठीक हो उनके साथ
कोई आफत न आई हो उनके पास
जहाँ भी हो सुखी हो
मन ही मन बस यही कामना करती हैं असफल प्रेमिकाएँ

असफल प्रेमिकाएँ लगने लगती हैं असमय बूढ़ी
आ जाती है बालों में समय से पहले सफेदी
और गालों पर झुर्रियाँ
वो झेल जाती हैं सबकुछ
नहीं झेल पातीं तो अपने प्रेमी द्वारा दी गई पीड़ा, यातना, उपेक्षा और अपमान
लंबी फेहरिश्त है असफल प्रेमिकाओं की
जो या तो पागल हुईं
या कुछ ने अपना लिया अध्यात्म
आश्रम या मेंटल एसालम बना उनका घर

वो जिसने खा ली नींद की गोलियाँ
या काट ली कलाई
किसी से न बर्दाश्त हुआ सदमा और रुक गई दिल की धड़कन
बहुत उदास और अपमानित हो कर गईं दुनिया से
वो मरी नहीं
उन्होंने आत्महत्या नहीं की
हत्या हुई उनकी
वो लोग जो उनसे प्यार का नाता जोड़ कर देने लगे समझदारी भरा बौद्धिक तर्क
कहने लगे – प्यार का कतई यह मतलब नहीं कि हमेशा साथ रहें
हम दूर रह कर भी साथ रह सकते हैं
खुश रह सकते हैं
दूर हैं, दूर नहीं
वो कहती रहीं – एक झलक देखना चाहती हूँ
छूना चाहती हूँ तुम्हें
महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारी साँसें
तुम्हारी मजबूत बाँहों में पहली बार जो गरमाहट और सुरक्षा महसूस की थी
फिर से करना चाहती हूँ वैसा ही महसूस
और तुम जोर से हँसते हुए कहते  – ‘क्या बचपना है,  यह सब बकवास है’

ले ली उनकी जान इस बकवास ने
तुम्हारी आपराधिक प्रवृत्ति ने
तुम्हारी कुटिल हँसी ने
तुम उड़ाने लगे उनका मजाक
खेलने लगे मासूम भावनाओं से
खेलने लगे उनके दिल से
कहती रहीं –  खेलो न मेरे दिल से
पूछती रहीं – यह तुम्हीं थे
कौन था वो जो पहरों पहर मुझसे फोन पर करता था बातें
हरेक छोटी छोटी बातें पूछता
अभी कैसी लग रही हो
क्या पहना है
क्या रंग है
बताओ

बताओ ओ प्रेमी !
क्या तुम्हें नहीं लगता
वो बनी ही थीं प्यार करने के लिए
और तहस नहस करके रख दी उनकी जिंदगी

तुमने ले ली उनकी जान
अब डर लगता है तुम्हें
वो कहीं से प्रेतात्माएँ बन कर आएँगी और तुम्हें डराएँगी
डरो मत
वे प्रेमिकाएँ हैं
प्रेतात्माएँ नहीं
वे किसी का कुछ नहीं बिगाड़ती
वे तो कब्र में भी गाती हैं अपने प्रेमी के लिए शगुनों भरी कविता
देखना वो अगले बसंत फिर से निकलेंगी अपनी अपनी कब्र से बाहर
और करेंगी प्यार
और यह धरती जब तक अपनी धुरी पर घूमती रहेगी
तब तक वे करती रहेंगी प्यार
और पूरी दुनिया को सिखाती रहेंगी प्यार…

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