विदेशिनी | कुमार अनुपम
विदेशिनी | कुमार अनुपम

विदेशिनी | कुमार अनुपम

विदेशिनी
‘आमी चीन्ही गो चीन्ही तुमारे
ओहो विदेशिनी’
               – रवींद्रनाथ टैगोर


1.

तुम बोलती हो
तो एक भाषा बोलती है

और जब
तुम बोलती हो
मेरी भाषा में
एक नई भाषा का जन्म होता है।


2.

वहाँ
तुम्हारा माथा तप रहा है
बुखार में

मैं बस आँसू में
भीगी कुछ पंक्तियाँ भेजता हूँ यहाँ से
इन्हें माथे पर धरना…।


3.

हम जहाँ खड़े थे साथ-साथ
एक किनारा था
नदी हमारे बिल्कुल समीप से
गुजर गई थी कई छींटे उछालती
अब वहाँ कई योजन रेत थी

हमें चलना चाहिए –
हमने सुना और कहा एक दूसरे से
और प्राक्-स्मृतियों में कहीं चल पड़े

बहुत मद्धिम फाहों वाली ओस
दृश्यों पर कुतूहल की तरह गिरती थी

हमने अपरिचय का खटखटाया एक दरवाजा
जो कई सदियों से उढ़का था धूप और हवा की गुंजाइश भर

हमने वहीं तलाशी एक तितली जिसके पंखों पर
किसी फूल के पराग अभी रोशन थे
(वहीं अधखाया हुआ सेब एक
किसी कथा में सुरक्षित था)
उसका मौन छुआ
जो किसी नदी के कंठ में
जमा हुआ था बर्फ की तरह
पिघल गया धारासार
जैसे सहमी हुई सिसकी
चीख में तब्दील होती है

और इस तरह
साक्षात्कार का निवेदन हमने प्रस्तुत किया

फिर भी
इस तरह देखना
जैसे अभी-अभी सीखा हो देखना
पहचानना बिल्कुल अभी-अभी
किसी आविष्कार की सफलता-सा
था यह
किंतु बार-बार
साधनी पड़ीं परिकल्पनाएँ
प्रयोग बार-बार हुए

दृश्य का पटाक्षेप
और कई डॉयलाग हम अक्सर भूले ही रहे
और शब्द इतने कमजर्फ
कि –
शब्द बस देखते रहे हमको
ऐसी थी दरम्यान की भाषा
– और कई बार तो यही
कि हम साथ हैं और बहुत पास
भूले ही रहे

किसी ऐसे सच का झूठ था यह बहुत संपूर्ण सरीखा
और जीवित साक्षात
जैसे संसार
में दो जोड़ी आँख
और उनका स्वप्न

फिर हमने साथ-साथ कुछ चखा
शायद चाँदनी की सिंवइयाँ
और स्वाद पर जमकर बहस की

यह वही समय था
जब बहुत सारा देशकाल स्थगित था
शुभ था हर ओर
तब तक अशुभ जैसा
न तो जन्मा था कोई शब्द न उसकी गूँज ही

हम पत्तियों में हरियाली की तरह दुबके रहे
पोसते हुए अंग-प्रत्यंग
हमसे फूटती रहीं नई कोपलें
और देखते ही देखते

हम एक पेड़ थे भरपूर
किंतु फिर भी
हमने फल को अगोरा उमीद भर
और हवा के तमाचे सहे साथ-साथ
हम टूटे
और अपनी धुन पर तैरते हुए
गिरे जहाँ
योजन भर रेत थी वहाँ
हमारे होने के निशान
अभी हैं
और उड़ाएगी हमें जहाँ जिधर हवा
ताजा कई निशान बनेंगे वहाँ उधर…

संप्रति हम जहाँ खड़े थे साथ-साथ
किन्हीं किनारों की तरह
एक नदी
हमारे बीचोंबीच से गुजर गई थी

अब वहाँ संदेह की रेत उड़ती थी योजन भर
जिस पर
हमारी छायाएँ ही
आलिंगन करती थीं और साथ थीं इतना
कि घरेलू लगती थीं।


4.

तुम्हारी स्मृतियों की जेब्रा क्रॉसिंग पर एक ओर रुका हूँ

आवाजाही बहुत है
यह दूरी भी बहुत दूरी है

लाल बत्ती होने तो दो
पार करूँगा यह सफर।


5.

जहाँ रहती हो
क्या वहाँ भी उगते हैं प्रश्न
क्या वहाँ भी चिंताओं के गाँव हैं
क्या वहाँ भी मनुष्य मारे जाते हैं बेमौत
क्या वहाँ भी हत्यारे निर्धारित करते हैं कानून
क्या वहाँ भी राष्ट्राध्यक्ष घोटाले करते हैं

क्या वहाँ भी
एक भाषा दम तोड़ती हुई नाखून में भर जाती है अमीरों के
क्या वहाँ भी आसमान दो छतों की कॉर्निश का नाम है
और हवा उसाँस का अवक्षेप
क्या वहाँ भी एक नदी
बोतलों से मुक्ति की प्रार्थना करती है
एक खेत कंक्रीट का जंगल बन जाता है रातोंरात
और किसान, पागल, हिजड़े और आदिवासी
खो देते हैं किसी भी देश की नागरिकता
और व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर दिए जाते हैं

क्या वहाँ भी
एक प्रेमिका
अस्पताल में अनशन करती है इस एक प्रतीक्षा में
कि बदलेगी व्यवस्था और वह
रचा पाएगी ब्याह अस्पताल में देखे गए अपने प्रेमी से कभी न कभी
और जिए जाती है दसियों सालों से
जर्जर होती जाती अपनी जवान कामनाओं के साथ

जहाँ रहती हो
तुम्हारे वहाँ का संविधान
कहो
कैसा है विदेशिनी?


6.

छतें दहल जाती हैं
हिल जाती है जमीन
भीत देर तक थरथराती रहती है
कपड़े पसारने के लिए ताने गए
तार की तरह झनझनाती हुई

जब गुजरते हैं उनके
उजड्ड अतृप्तियों के विमान
हमारे ऊपर से
हमारी हड्डियों में भर जाती है आँधी
सीटियाँ बजने लगती हैं

उन्हें नक्काशियाँ पसंद हैं
उन्हें फूल पसंद हैं
वो दुबली-पतली चक्करदार गलियाँ
जिनमें
कस्बे के बहुत से घरों की
भरी रहती हैं साँसें और राज
जिनके बीचोबीच से होकर गुजरती हैं
स्कार्फ बाँधे नन्हीं-नन्हीं बच्चियाँ
खिलखिलाती स्कूल जाती हुई
उन्हें ये सब बेहद पसंद हैं

जिन्हें वे पसंद करते हैं
उन सब पर
वे बम बरसा देते हैं
वे उन्हें नष्ट कर देना चाहते हैं
कि उन सबको
कोई और पसंद न कर सके
उन्हें ऐसा डर लगा ही रहता है

आखिर
उनकी पसंद का एक मतलब जो है

विदेशिनी,
इस तरह तो
मुझे मत पसंद करना!


7.

मेरी पसंद का एक मतलब है
तुम्हारी पसंद का एक मतलब है

अपनी पसंद की हिफाजत के लिए
विदेशिनी,
हमें उनकी पसंद का मतलब जानना
बहुत जरूरी है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *