वीणा का तार | माखनलाल चतुर्वेदी
वीणा का तार | माखनलाल चतुर्वेदी

वीणा का तार | माखनलाल चतुर्वेदी

वीणा का तार | माखनलाल चतुर्वेदी

विवश मैं तो वीणा का तार। 
जहाँ उठी अँगुली तुम्हारी, 
मुझे गूँजना है लाचारी, 
मुझको कंपन दिया, तुम्हीं ने, 
खुद सह लिया प्रहार। 
दिखाऊँ किसे कसक सरकार! 
अभागा मैं वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार।

टूक-टूक स्वर ही क्या कम था! 
जो उस को बेड़ी पहना दी? 
क्या बंदी स्वर के चढ़ने को, 
बंधन की सीढ़ियाँ बना दीं? 
मधुरिमा पर यह अत्याचार, 
तुम्हारी ध्वनि-वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार।

तारों में यों कस-कस रखना, 
फिर सीढ़ियाँ बनाना कैसा? 
ठोकर से गिरता स्वर-बंदी, 
ठोकर मार चढ़ाना कैसा? 
धन्य यह जग का स्वर-सत्कार! 
कैद हूँ मैं वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार।

तुम्हारे इंगित पर इतिहास, 
चढ़ा जाता हूँ मैं दृग मींच, 
खींच दी तुमने क्यों फिर हाय, 
कलेजे पर खूँटी की खींच? 
मधुरिमा दूँ? फाँसी पर? प्यार, 
व्यथित, बेबस, वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार।

तुम्हारे छू जाने से दुःख 
दे चला कौन ज्वार, चीत्कार, 
फाँसियों पर बन कर यह कौन, 
आ गया निठुर चढ़ाव, उतार! 
मधुर यह मौत, मधुर यह भार। 
अभागा मैं वीणा का तार! 
विवश मैं तो वीणा का तार।

चढ़े जाते हो गूँजों पर, 
उतरते हो झंकारों में, 
फूट जायेंगे कोमल अंग, 
तुम्हारी धुन के तारों में। 
न सह स्वर मेरे संग प्रहार, 
सहेगा सब वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार।

न मुझमें रंग, न मुझमें रूप, 
न दीखे मेरा कहीं शरीर। 
किंतु मेरे प्राणों पर हाय, 
टूटते हो तुम आलमगीर! 
मधुरिमे! तू कितनी लाचार, 
अभागा मैं वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार।

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