वरदान | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी
वरदान | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

‘सेवासदन’ के उपरांत सन् 1920 में प्रेमचंद का यह उपन्यास प्रषित हुआ ।

किन्तु ‘सेवासदन’ के भाँती इस उपन्यास में भाव की गरिमा और वैचारिक स्पष्टता नही थी ।

उपन्यास की अधिकांश कथा में क्रमशः कृत्रिमता बढ़ती चली गयी है और कल्पना की अतिशयता ने मूल कथानक को ही गडबड कर दिया है ।

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निसंदेह ही ‘वरदान’ प्रेमचंद की एक दुर्बल कृति है ।  

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