वक्त के मानिंद
वक्त के मानिंद

गुजरते वक्त के मानिंद 
कतरा-कतरा पिघलती जिंदगी के साथ 
कुछ ख्वाहिशों को पाने की खातिर 
कुछ गमों को भूलने की कोशिश के साथ 
किसी अपनों के हाथों को थाम 
भीड़ में कभी अकेले गुम होकर भी 
अकेले-अकेले चलकर सालों बिता दिए 
किस-किस से किस-किस की बात कहें हम

कई रातों में बहे आँसुओं ने देखा है हमें 
कई राहों ने भटकते देखा है हमें 
दिन-रात पहर दो-पहर पल-दो-पल 
सब जानते हैं 
जिंदगी आसान न थी जो जी चके हैं हम

जिंदगी आसान होगी या नहीं कौन बता पाएगा 
लोग हाथों के लकीरों के नक्शे दिखाकर 
रास्ता पूछते हैं 
कौन अपने रास्तों को 
लकीरों में बदलने का हुनर देगा हमें

नजर बदलने लगी पैर भी डगमगाने लगे 
न जाने ये रास्ते कब खत्म होंगे 
जो मंजिल पे पहुँचा पाएँगे हमें 
खामखा भागते-भागते सारी जद्दोजहद के बाद भी 
हम खाली हैं झोली खाली है 
अपने भी अपने कहाँ हो पाते हैं 
उनकी अपनी जिंदगी की बेचारगी है 
एक छोर पर पहुँच चुके हैं अब 
आगे जाने का दिल नहीं 
साँसें भी दिल से खफा हो चली हैं 
लगता है कोई आया है लेने

दर्द सारे छू होने लगे साँसें परायी होने लगीं 
ये सुकून कहाँ था अब तक जिसके लिए 
उम्रभर जिंदगी को हम रुलाते रहे 
अब ठीक नहीं है 
दुख नहीं, दर्द नहीं, मंजिल नहीं, राहें नहीं 
आँखें बंद होते ही सारे बवालों से बच गए 
साँस रुकते ही अनजानी थकन से बच गए 
मौत क्या इसे कहते हैं तो यही बेहतर है 
न हम हैं न हमारे हैं न दुनिया के झंझट हैं 
एक रोशनी की मानिंद, एक वक्त की मानिंद 
हम गुजरते गए 
शायद कुछ लम्हे ही थे वो 
जो हमें अपने साथ ले गए और कितने जाहिल थे हम 
उम्र भर जो न साथ जाना था उसके लिए लड़ते रहे 
खैर अब सुकून है, कुछ ठंड है रवाँ रवाँ 
कहाँ हैं? कहाँ जाना है? इसका कोई गम नहीं 
जिंदगी नहीं तो हम नहीं

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