उठ महान | माखनलाल चतुर्वेदी
उठ महान | माखनलाल चतुर्वेदी

उठ महान | माखनलाल चतुर्वेदी

उठ महान | माखनलाल चतुर्वेदी

उठ महान ! तूने अपना स्वर 
यों क्यों बेंच दिया? 
प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण का 
पट क्यों खेंच दिया?

वे गाए, अनगाए स्वर सब 
वे आए, बन आए वर सब 
जीत-जीत कर, हार गए से 
प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब!

See also  बिखरना | रघुवीर सहाय

तुम बोले, युग बोला अहरह 
गंगा थकी नहीं प्रिय बह-बह 
इस घुमाव पर, उस बनाव पर 
कैसे क्षण थक गए, असह-सह!

पानी बरसा 
बाग ऊग आए अनमोले 
रंग-रँगी पंखुड़ियों ने 
अंतर तर खोले;

पर बरसा पानी ही था 
वह रक्त न निकला! 
सिर दे पाता, क्या 
कोई अनुरक्त न निकला?

See also  पिता | कुमार अनुपम

प्रज्ञा दिग्वसना? कि प्राण का पट क्यों खेंच दिया! 
उठ महान तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया!


Leave a comment

Leave a Reply