उसके पाँव | एटगर कैरेट
उसके पाँव | एटगर कैरेट

उसके पाँव | एटगर कैरेट – Usake Panv

उसके पाँव | एटगर कैरेट

यह कहानी वास्तविक है। कोई तीन महीने पहले की बात है, बस स्टैंड पर हुए फिदायीन हमले में बत्तीस वर्षीय एक स्त्री मारी गई। उस धमाके में उसके साथ साथ और कई मौतें भी हुईं पर यह कहानी खास उस स्त्री के बारे में ही है।

आतंकवादी हमलों में जो लोग मारे जाते हैं उनको अबु कबीर फोरेंसिक इंस्टीच्यूट में ऑटोप्सी के लिए ले जाया जाता है। इस रस्म पर देश के अनेक प्रबुद्ध लोगों ने सवाल खड़े किए… यहाँ तक कि अबु कबीर फोरेंसिक इंस्टीच्यूट में काम करने वाले बहुतेरे कर्मचारियों तक को यह नहीं मालूम कि ऐसा क्यों किया जाता है। ऐसी हमलों की चपेट में आए लोगों की मौत के कारणों का पता बच्चे बच्चे को होता है – दरअसल ऐसे हुई मौत सड़क पर अचानक मिल गया कोई अजनबी अंडा नहीं है कि इसको इस कुतूहल और सावधानी के साथ तोड़ा जाए कि अंदर जाने क्या होगा… जैसे पाल से चलने वाली किश्ती… या रेसिंग मुकाबलों के लिए बनाई गई ख़ास तरह की कार… या प्लास्टिक का कोई लुप्त हो चुका झबरीला जानवर।

फोरेंसिक इंस्टीच्यूट का जहाँ तक सवाल है जब भी वहाँ ऐसे लाई गई लाशों की चीरफाड़ की गई है उसके अंदर से हर बार वही चीजें मिली हैं – धातु के कुछ आड़े तिरछे टुकड़े, नुकीली कीलें, धारदार पत्तियाँ आदि आदि। फिर भी, इस ढर्रे में शायद ही कभी कोई बदलाव होता हो। पर इस बार बत्तीस वर्षीया स्त्री के मामले में जरूर कुछ अलग हुआ – जब उसके शरीर को काट कर खोला गया तो उसके अंदरूनी अंगों को क्षत-विक्षत कर डालनेवाले धातु के टुकड़ों के अतिरिक्त दर्जन भर रसौलियाँ निकलीं… और वह भी छोटी मोटी नहीं बल्कि काफी बड़े आकार की। पेट में, लिवर में, आँतों में और यहाँ तक कि माथे में भी। जाँच करने वाले डॉक्टर ने जैसे ही उसकी खोपड़ी खोली, डर के मारे उसके मुँह से अनायास निकल पड़ा : ओ माई गॉड!

दिमाग के अंदर इतनी सारी रसौलियों को देख कर उसको एकदम से लगा जैसे खूँखार आदमखोर छींटों का पूरा कुनबा वहाँ धावा बोल बैठा हो और ज्यादा से ज्यादा गोश्त नोंच खसोट कर चट कर जाने की उनकी हवस बढ़ती ही जा रही हो। यहीं किसी विशेषज्ञ का वैज्ञानिक विश्लेषण काम आता है : यदि वह स्त्री इस आतंकवादी हादसे में न मरती तो भी हफ्ते भर में उसका शरीर धराशायी हो जाता… और जीवन लीला समाप्त होने में महीना भर भी न लगता – हद से हद दो महीने, उससे ज्यादा एक दिन भी नहीं।

ताज्जुब यह कि उस जैसी युवा स्त्री के अंदर कैंसर इस कदर अपनी जड़ें फैला चुका था तो उसका कोई संकेत बाहर से उसके दैनिक क्रिया कलाप पर क्यों नहीं दिखाई पड़ रहा था… किसी डॉक्टर ने इस बीमारी की शिनाख्त क्यों नहीं की? हो सकता है वह स्त्री मेडिकल जाँच के लिए किसी डॉक्टर के पास जाने में आनाकानी करती रही हो… यह भी हो सकता है कि उसको दर्द और चक्कर महसूस होते हों पर काम का सिलसिला ऐसा रहा हो कि उसकी तकलीफ राजमर्रा के कामों के बीच दफ़्न होकर रह जाती हो। वजह जो भी रही हो… चीरने फाड़ने का सारा काम पूरा होने के बाद उस लाश की औपचारिक तौर पर शिनाख्त के लिए उस स्त्री के पति को बुलाया… पर डॉक्टर गहरे असमंजस में था कि उसको स्त्री के शरीर के अंदर के हाल सच सच बता दे या गोलमोल कर जाए। डॉक्टर का मन एक तरफ यह कहता कि सच्चाई का खुलासा कर देने से पति को थोड़ी तसल्ली मिल जाएगी और सदमा थोड़ा कम हो जाएगा… कि कोई यह सोच कर हलकान क्यों हुआ जाए कि “काश उस दिन वह काम पर न गई होती…” या “मैं ही उसको ऑफिस छोड़ने क्यों लेकर नहीं गया…?” स्त्री के शरीर की अंदरूनी हालत – कि धमाके न भी होते वह अपने आप मृत्यु की कगार पर पहुँच ही चुकी थी – का पता चल जाए तो शायद उसका दुख थोड़ा धुँधला पड़ जाएगा।

डॉक्टर के मन का दूसरा पक्ष कहता मेरे सच बता देने से कहीं पति को ज्यादा सदमा लगे और यह अप्रत्याशित रूप से सामने आ खड़ी हुई विपत्ति उसको और अस्थिर और दुर्बल न बना दे। उसको यह लगता कि एक मौत पति को दो दो स्तरों पर प्रताड़ित न करने लगे। डॉक्टर किसी भी भावनात्मक द्वंद्व में फँस कर आहत पति को और ज्यादा मुश्किल में नहीं डालना चाहता था इसलिए फूँक फूँक कर कदम रख रहा था। इन सारे प्रश्नों और प्रतिप्रश्नों से से गुजरते हुए डॉक्टर इस नतीजे पर पहुँचा : अब इस सच्चाई पर पर्दा डालने या खुलासा करने से फर्क क्या पड़ने वाला है? जिसकी बात को लेकर इतने पशोपेश में इतनी देर से हूँ उसकी साँस बंद हुए तो खासी देर हो चुकी है… और यह आदमी विधुर हो चुका है और उसके बच्चे बगैर माँ के हो ही चुके हैं। अब सच यही है कि स्त्री इस दुनिया में नहीं है, बाकी सब कुछ बेमानी है।

जब लाश को पहचानने की पति की बारी आई तो उसने बगैर विलंब किए साफ साफ कहा कि उसको लाश का चेहरा नहीं बल्कि पाँव दिखाया जाए… अधिकतर लोग चेहरा देख कर शिनाख्त करने का आग्रह करते हैं पर यहाँ आग्रह पाँव देखने का था। पति के मन में यह विचार आया कि आखिरी बार यदि वह अपनी पत्नी का चेहरा देखेगा तो जब तक जिंदा रहेगा वह शक्ल उसकी आँखों में डूबती उतराती रहेगी… वह इस भावनात्मक यंत्रणा के लिए तैयार नहीं था। उसने अपनी पत्नी से खूब प्यार किया था और उसके शरीर के पोर पोर से इतना वाकिफ था कि कहीं से उसको देख कर पहचान सकता था… सिर्फ उसके पाँव ही ऐसे थे जो रोज रोज की नजर और छुअन से थोड़े दूर दूर रहे, अपेक्षाकृत तटस्थ। उसने मृत पत्नी के पाँव पर उड़ती हुई नजर डाली… सबसे पहले उसे अँगूठे के नाखून के ऊपर कुछ लहरदार रेखाएँ दिखाई दीं, अँगूठा भी सामान्य से कुछ ज्यादा फूला हुआ था… पर तलवे एकदम सुघड़। पहचान लेने के बाद भी उसने मुँह खोलने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। छोटे आकार (6 नंबर साइज) का तलवा देख कर एकबारगी उसको संशय हुआ कि पाँव देख कर शिनाख्त करने की शर्त रख कर उसने कोई गलती तो नहीं कर दी? पता नहीं वह सही सही पहचान भी रहा है या नहीं? उसने लोगों से सुना था कि मर जाने पर लोगों के चेहरे ऐसे लगते हैं जैसे वे गहरी नींद में सो रहे हों… पर किसी मृत व्यक्ति के पाँव? उसे याद आया, अँगूठे के नाखून जिंदगी और मौत के भेद को उजागर करने में कभी चूक नहीं करते। उसने पल भर में अपने आपको सँभाला और सधे हुए शब्दों में डॉक्टर से कहा : “यह उसी के पाँव हैं…” और नजर झुका कर चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया।

Download PDF (उसके पाँव)

उसके पाँव – Usake Panv

Download PDF: Usake Panv in Hindi PDF

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *