उस रात की चाह
उस रात की चाह

जब मैं तुम्हारे शहर गया था रेलवे का एक्जाम देने
स्टेशन के बाहर कागज के टुकड़ों की तरह लड़के बिछे हुए थे
मैं भी उनके साथ बिछा हुआ था
खुश था कि इस शहर में तुम सोई हुई हो
कभी कभी तो इस बात पे सावन का मोर बन जाता
कि तुम मुझे प्यार करती और बुलाती तो
मैं तुम्हारे तकिए का कितना हिस्सा खिंचता

इससे पहले उत्तर से दक्षिण तक
पूरब से पश्चिम तक, हर स्टेशन के बाहर मुझे नींद आती रही
इस बार नींद की परिभाषा
जो बदली कि अभी तक बदल रही है

तुम्हारे पीठ के नीचे जो गद्देदार बिछावन था
जिस पर तुम घुलट घुलट के सो रही हो मेरे बिना
तुम्हारी नींद कितनी अनबोली है
और तुम उसे सताए जा रही हो तब से

तुम्हारे शहर के पत्थर बहुत अच्छे हैं जो मुझे समझते हैं

उन्होंने मेरी देह के नीचे दूब उगा दिया है
मैं तुम्हें दुनिया में सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ
इसलिए अनहद का सबसे ज्यादा खजाना मेरे पास ही था
मैं तुम्हारे शहर में एक्जाम देने नहीं
तुम्हें अनहद देने आया था

2 .

उस रात जब तुम अपने शहर के साथ नींद में थी
तुम्हारे शहर के स्टेशन पर हाजारों जिंदा जवान लाशें बिछी थीं
बस एक मैं था कि अपनी देह को बार बार छूते हुए
अपनी ठंढी लाश को सहला रहा था

जैसे तुम अपने सपनों की बहुत मुरीद हो
तुम्हारे शहर की पुलिस हादसों की बहुत मुरीद है
लड़कों को खदेड़ती पुलिस मेरे पास आते आते तक रुक गई थी
और कहा था कि इस सीमा के बाद कोई नहीं आएगा
जंगल यहाँ से शुरू होता है

मैं तुम्हें नींद में देखने के बारे में सोचता हूँ
मेरे होंठों पर सिंदूरी आम आ जाता है कहीं से
तब मैं सिपाही से कहता हूँ
तुम मेरी प्रेमिका के शहर के सिपाही हो
तुम्हें पता होना चाहिए, मंगल यहाँ से शुरू होता है।

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