उम्‍मीदें ही तो कारण हैं आँसुओं का
उम्‍मीदें ही तो कारण हैं आँसुओं का

उम्‍मीदें ही तो कारण हैं इन आँसुओं का।
हट जाओ आगे से, ओ अनाड़ियों के दिल!
कवि नहीं रोया होता इस तरह कभी
यदि रही न होती उसे उम्‍मीदें।

गीलें होठों और पलकों वाला
वह हैं नहीं नायक संवेदनशील,
पर वह पैदा होता है तब
जब भरपूर होती हैं उम्‍मीदें।

जब भरपूर होती हैं उम्‍मीदें
इस संसार में जन्‍म लेता है कवि,
उसकी नियति में न होता जीना
यदि बची न हों शेष उम्‍मीदें।

दूसरों की अपेक्षा उसे अधिक
उपलब्‍ध रहती है उम्‍मीदों की रोशनी।
ओ मस्‍कवा! विश्‍वास कर उसके आँसुओं पर
भले ही तुम्‍हें होता नहीं स्‍वयं किसी पर।

विश्‍वास कर तू, ओ मस्‍कवा! उसके आँसुओं पर
उसका रोना ख़राब कपड़ों के कारण नहीं।
वह रो रहा है यानी उसमें जिंदा हैं
उम्‍मीदों के बिना न जीने की उम्‍मीदें।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *