मैं समेट रही हूँ …और सिमट रही हूँ उदासियों की साँवली नदीमेरे आखों के निचेउतर आई हैउसकी जरा जरा सी लहरोंपरमेरे सपनेडूबते उतरते हैहर घड़ी मैं देख नही पातीभीगती उँगलियों केपोर पर लिखा होता है…