तुम इसे कोई सितारा मत समझना | धनंजय सिंह
तुम इसे कोई सितारा मत समझना | धनंजय सिंह
मैं अँधेरी घाटियों का एक जुगनूँ
तुम मुझे कोई सितारा मत समझना।
मैं क्षितिज उजियार से भर दूँ
नहीं, संभव नहीं यह
मैं निशा की मात्र कौतूहलजनक उद्भावना हूँ
सूर्य भी जब हो समर्पण को विवश तब
मैं तिमिर की सूक्ष्मतम अवमानना हूँ
टिमटिमाना है प्रकृति की एक घटना
तुम इसे कोई इशारा मत समझना।
स्नेह सिंचित वर्तिका जब तक रहेगी
अनवरत यह देह का दीपक जलेगा
आँधियाँ ले प्रबल झंझावात आएँ
मैं अँधेरों से लड़ूँगा प्राण-पण से
उम्र भर संघर्ष का यह क्रम चलेगा
मैं उड़ूँगा निविड़ तम में टिमटिमाता
तुम मुझे पथ में सहारा मत समझना।