तुलसी बाबा | त्रिलोचन
तुलसी बाबा, भाषा मैंने तुमसे सीखी
मेरी सजग चेतना में तुम रमे हुए हो।
कह सकते थे तुम सब कड़वी, मीठी तीखी।
प्रखर काल की धारा पर तुम जमे हुए हो।
और वृक्ष गिर गए मगर तुम थमे हुए हो।
कभी राम से अपना कुछ भी नहीं दुराया,
देखा, तुम उन के चरणों पर नमे हुए हो।
विश्व बदर था हाथ तुम्हारे उक्त फुराया,
तेज तुम्हारा था कि अमंगल वृक्ष झुराया,
मंगल का तरु उगा; देख कर उसकी छाया,
विघ्न विपद के घन सरके, मुँह नहीं चुराया।
आठों पहर राम के रहे, राम-गुन गाया।
यज्ञ रहा, तप रहा तुम्हारा जीवन भू पर।
भक्त हुए, उठ गए राम से भी, यों ऊपर।