तमगा | अरुण कमल
तमगा | अरुण कमल

तमगा | अरुण कमल

तमगा | अरुण कमल

वे हद से हद मुझे मार देंगे
इससे अधिक कोई किसी का कुछ कर भी नहीं सकता
वे एक भिखमंगे को उसके पुरखों के पाप की सजा देंगे
एक लोथ को फाँसी

उन्‍हें डालने दो सूखी नदी पर जाल
बादलों को किसका डर है
मुझे किसी का डर नहीं
जो कुछ खोना था खो चुका
जो कुछ पाना है वह कोई देगा नहीं

See also  ऋतु वर्णन

बहुत दुनिया मैंने देख ली
मोक्ष की फिर भी चाह नहीं
चौरासी लाख योनियों में भटकता फिरूँगा
ऐसे ही भोग और राग में लिप्‍त
अन्‍न और औरत के मोह में पागल

वे काँसा भी नहीं पाएँगे सोना तो दूर
मैं हीरे का तमगा छाती में खोभ
खून टपकाता फिरूँगा महँगे कालीनों पर –
निशाने को बेधने के बाद यह गोली
राँगे का टुकड़ा ही तो है।

Leave a comment

Leave a Reply