बदला कुछ भी नहींयह देह उसी तरह दर्द का कुआं है।इसे खाना, सांस लेना और सोना होता है।इस पर होती है महीन त्वचाजिसके नीचे ख़ून दौड़्ता रहता है।इसके दांत और नाख़ून होते हैं।इसकी हड्डियां होती हैं जिन्हें तोड़ा जा सकता है।जोड़ होते हैं जिन्हें खींचा जा सकता है। बदला कुछ भी नहीं।देह आज भी कांपती […]
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