चाँद तुम मेरे भीतर सदियों सेठहरी झील में इठलाने लगे होसपने जगाने लगे होये जानते हुए कि तुम्हारा असली घरआकाश हैझील तो मात्र तुम्हारा प्रतिबिंब हैइसके बावजूद जब तुम हँसते होसारी नदियों में एक साथ उफान पर उठती हैंलहरें अपनी खनक भरी बूँदों के संगऔर चाँद जब तुम देखते हो कभी एकटकडगमगा जाती है पृथ्वी […]
Tag: Wajda Khan
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तुममें खिलतीं स्त्रियाँ
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