हल्के रंग के परिधान मेंअपने कई हमसफरों के साथसूखी रोटी-सी मरियलपुस्तक मेले के एक साफ-सुथरे छोटे स्टाल परवह खड़ी हैशताब्दियों से उसके चेहरे पर हैन कोई कामनान कौतूहलन कोई रोमांचजैसे सूख गया हो कोई कुआँऔर छा गई हो उसके मुहाने परउदासी की घास सब कहते हैंउसे साध्वी कहती हैं उसकी आँखेंचीख-चीखकरसाध्वी नहीं, मैं एक स्त्री […]
Tag: Vinod Das
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पारदर्शी किला
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जरा सा प्यार
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