मेरी एक और धरती भी हैउपजाऊसदा अन्नमयसुंदर और शांत ऋतुओं के बीजजहाँ होती हैं अँधेरे कीसघन छायाएँ विश्रांतहिलती हैं टहनियाँसमय की अतुकांतटपकती हैं बूँदें अरुणोदय कीपवित्र निष्कामघास के हरे तिनकों परअशा का मत करो कभी तिरस्कारकैसे हो गए हैं वनउदास धुँधलके भरेबिना बिरखा केमेरे भीतर हैएक और क्षितिजतुम्हारी कामकाजी आँखों से ओझलअभी अभी हुआ हैउदित […]
Vijendra
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