अद्भुत एक अनूपम बाग

अद्भुत एक अनूपम बाग

अद्भुत एक अनूपम बाग।जुगल कमल पर गज बर क्रीड़त, तापर सिंह करत अनुराग।हरि पर सरबर, सर पर गिरिवर, फूले कुंज पराग।रुचित कपोत बसत ता ऊपर, ता ऊपर अमृत फल लाग।फल पर पुहुप, पुहुप पर पल्लव, ता पर सुक पिक मृग-मद काग।खंजन, धनुक, चंद्रमा ऊपर, ता ऊपर एक मनिधर नाग।अंग अंग प्रति और और छबि, उपमा … Read more

अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं

अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं

अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं।कैसैं रहत रूप-रस राँची, ये बतियाँ सुनि रूखीं।अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब इतनौं नहिं झूखीं।अब यह जोग संदेसौ सुनि-सुनि, अति अकुलानी दूखीं।बारक वह मुख आनि दिखावहु, दुहि पय पिवत पतूखी।सूर, सु कत हठि नाव चलावत, ये सरिता हैं सूखी।।

अँखियाँ हरि-दरसन की प्यासी

सूरदास

अँखियाँ हरि-दरसन की प्यासी।देख्यौ चाहति कमलनैन कौं¸ निसि-दिन रहतिं उदासी।आए ऊधौ फिरि गए आँगन¸ डारि गए गर फाँसी।केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृंदावन के बासी।काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगनि के मन हाँसी।सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ¸ करवत लैहौं कासी।।