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स्वप्न | राजेंद्र प्रसाद सिंह

स्वप्न | राजेंद्र प्रसाद सिंह स्वप्न | राजेंद्र प्रसाद सिंह स्वप्न…कच्ची नींद का पाहुन,बेवफा है,– दीठ से… भागेपीठ-पीछे कोसने कोबंद पलकों मेंसदा जागे,एक खुशबू से बदल दे राह,एक धूप न जी सकेजिसकी रतीली चाह,जोड़ ले कड़ियाँ संझातीशिखाओं की,– छोड़ दे घड़ियाँ रुलातीउषाओं की,स्वप्न…टूटी बीन की धड़कन,दोरुखा है !