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चुभता रहा दिन | राजेंद्र गौतम

चुभता रहा दिन | राजेंद्र गौतम चुभता रहा दिन | राजेंद्र गौतम आज भी चुभता रहा दिन भरशोर किरचों-सापर नहीं टूटी उदासी की साँवली पर्तें। तहा कर संबोधनों को थारख दिया कब काफिर कहाँ से आ खड़ी है यहयाद सिरहानेअध-लिखे खत जो किताबों मेंथे कभी छूटेमिटे सब आखर लगे उनकेअर्थ पियरानेखुली आँखों में नहीं हैं […]