हँसी | प्रदीप त्रिपाठी

हँसी | प्रदीप त्रिपाठी

हँसी | प्रदीप त्रिपाठी हँसी | प्रदीप त्रिपाठी एक ऐसी बेवक्त की हँसीजो तुम्हारे न होने की खुशी थीसिर्फ आशावादी…मन के किसी एक छोर से होकरगुजर गईउसका इस तरह से गुजरनामन की कुंठा के साथ-साथकविता में कहने की आदत का छूटने जैसा थाठीक उसी तरहजैसे अपरिचित चेहरे कोबार-बार, कई बार देखने परलगता होइसको मैंने कहीं … Read more

स्त्री… | प्रदीप त्रिपाठी

स्त्री... | प्रदीप त्रिपाठी

स्त्री… | प्रदीप त्रिपाठी स्त्री… | प्रदीप त्रिपाठी अपनी दोनों आँखों सेएक साथ देखता हूँ मैंदो अलग-अलग स्त्रियों कोएक ही दिन में। एक आँख से देखता हूँ उस स्त्री कोजो अपने कमर मेंछोटे से कपड़े में बच्चे को बाँधकरसड़क या सीढ़ियों पर मध्य दोपहरी मेंपूरे दिन काम करती है,औरदूसरी आँख से देखता हूँकिसी एक प्रोफेसर … Read more

शब्द… | प्रदीप त्रिपाठी

शब्द... | प्रदीप त्रिपाठी

शब्द… | प्रदीप त्रिपाठी शब्द… | प्रदीप त्रिपाठी मैंने शब्दों से ही सीखा है सब कुछहँसना, बोलना, चलना, उठना, बैठना,खेलना, घूमना, गाना… और कुछ लिखना भीसीखा है मैंने शब्दों से ही। कुछ भी सोचता हूँ मैंइन्हीं से शुरू होना पड़ता है मुझेयहाँ तक कि जब मैं कभी लड़ने की कोशिश करता हूँ इनसेतब भीकभी-कभी तो … Read more

यह जो मनुष्य है | प्रदीप त्रिपाठी

यह जो मनुष्य है | प्रदीप त्रिपाठी

यह जो मनुष्य है | प्रदीप त्रिपाठी यह जो मनुष्य है | प्रदीप त्रिपाठी यह, जो मनुष्य हैइसमेंसर्प से कहीं अधिक विष हैऔरगिरगिट से अधिक कई रंगदोनों का एक साथ होनाअथवा बदलनामनुष्य, सर्प और गिरगिट के लिए तो नहींपरंतुमानव-सभ्यता के लिए घातक है।

पेशावर के बच्चों के प्रति | प्रदीप त्रिपाठी

पेशावर के बच्चों के प्रति | प्रदीप त्रिपाठी

पेशावर के बच्चों के प्रति | प्रदीप त्रिपाठी पेशावर के बच्चों के प्रति | प्रदीप त्रिपाठी बच्चों ने नहीं पढ़ी थीकोई ऐसी ‘मजहबी’ किताबअथवा ‘धर्म-ग्रंथ’जिसमें लिखा होबम, बारूद अथवा अचानक अँगुलियों से फिसल जाने वालीसंवेदनहीन, बंदूक की गोलियों की अंतहीन कथाऐसी कोई भी किताब नहीं पढ़ी थी,अब तक, बच्चों नेबच्चों ने नहीं बूझी थी ऐसी … Read more

नहीं करना चाहता हूँ संवाद ! | प्रदीप त्रिपाठी

नहीं करना चाहता हूँ संवाद ! | प्रदीप त्रिपाठी

नहीं करना चाहता हूँ संवाद ! | प्रदीप त्रिपाठी नहीं करना चाहता हूँ संवाद ! | प्रदीप त्रिपाठी अब नहीं करना चाहता हूँ…मैंतुम्हारी कविताओं से किसी भी तरह का संवाद… एक लंबे अरसे से सुनते-सुनतेतंग आ चुका हूँ… मैंतुम्हारे इन अजनबी बीमारबूढ़े शब्दों को… मुझे अच्छी नहीं लगतीतुम्हारी किसी एक उदास शाम की कल्पना बार-बार … Read more

तुम्हारे नाम को लेकर | प्रदीप त्रिपाठी

तुम्हारे नाम को लेकर | प्रदीप त्रिपाठी

तुम्हारे नाम को लेकर | प्रदीप त्रिपाठी तुम्हारे नाम को लेकर | प्रदीप त्रिपाठी आँगन के पारपल भर के संगीत के लिएढूँढ़ लेना चाहता हूँ, तुमकोसिर्फ तिनके की नोंक भर।न जाने कैसा होगाअब, तुम्हारा भविष्यतुमसे उतनी घृणा तो पहले भी नहीं थीन ही कभी अच्छी दोस्ती हीफिर भी…प्रायश्चित करूँगातुम्हारे नाम को लेकरनिःशब्द,हमेशा-हमेशाएक इतिहास के खातिर

जब पहली बार छोड़ रहा था गाँव | प्रदीप त्रिपाठी

जब पहली बार छोड़ रहा था गाँव | प्रदीप त्रिपाठी

जब पहली बार छोड़ रहा था गाँव | प्रदीप त्रिपाठी जब पहली बार छोड़ रहा था गाँव | प्रदीप त्रिपाठी सोचा भी न थाछोड़ना होगा मुझे भी अपना गाँवजबपहली बार छोड़ रहा था गाँव। दो कदम आगे बढ़ा ही था किमेरी निगाहें माँ के उन आँचल से लिपटी ही रह गई थीजिनसे लिपटने के बादमुझे … Read more

जंगल का आदमी | प्रदीप त्रिपाठी

जंगल का आदमी | प्रदीप त्रिपाठी

जंगल का आदमी | प्रदीप त्रिपाठी जंगल का आदमी | प्रदीप त्रिपाठी मैंजंगल का आदमीजंगल में रहना मुझे पसंद है।मेरे लिए जिंदगी का होनाउतना महत्वपूर्ण नहींजितना कि एक जंगल का अक्सरमैं शहरों की तरफ भागता हुआदिख जाया करता हूँअपनी कुछ बची हुईलकड़ि‌यों के गट्ठरों के साथइसका मतलब यह नहींमुझेशहर में रहना भी पसंद है मुझे … Read more

खुरदुरे पैर की जमीन | प्रदीप त्रिपाठी

खुरदुरे पैर की जमीन | प्रदीप त्रिपाठी

खुरदुरे पैर की जमीन | प्रदीप त्रिपाठी खुरदुरे पैर की जमीन | प्रदीप त्रिपाठी सदियों से देख रहा हूँ मैंइन्हीं खुरदुरे पैरों कोहाँफताझुँझलाताकाँपताबौखलाता हुआपर…कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँइन फटेहाल पैरों काजिनकी दरारें धीरे-धीरेअब और बढ़ती जा रही हैंदिन-प्रतिदिन…