ठेस | फणीश्वरनाथ रेणु

ठेस | फणीश्वरनाथ रेणु

ठेस | फणीश्वरनाथ रेणु – Thes ठेस | फणीश्वरनाथ रेणु खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे मजदूर खेत पहुँच कर एक-तिहाई काम कर … Read more

तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम | फणीश्वरनाथ रेणु

तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम | फणीश्वरनाथ रेणु

तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम | फणीश्वरनाथ रेणु – Tisari Kasam Urph Mare Gae Gulapham तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम | फणीश्वरनाथ रेणु हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है… पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका … Read more

लाल पान की बेगम | फणीश्वरनाथ रेणु

लाल पान की बेगम | फणीश्वरनाथ रेणु

लाल पान की बेगम | फणीश्वरनाथ रेणु – Lal Pan Ki Begam लाल पान की बेगम | फणीश्वरनाथ रेणु ‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?’ बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में … Read more

नैना जोगिन | फणीश्वरनाथ रेणु

नैना जोगिन | फणीश्वरनाथ रेणु

नैना जोगिन | फणीश्वरनाथ रेणु – Naina Jogin नैना जोगिन | फणीश्वरनाथ रेणु रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को ‘कोंचा’ की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका ‘आँचर’ भी … Read more

रसप्रिया | फणीश्वरनाथ रेणु

रसप्रिया | फणीश्वरनाथ रेणु

रसप्रिया | फणीश्वरनाथ रेणु – Rasapriya रसप्रिया | फणीश्वरनाथ रेणु धूल में पड़े कीमती पत्थर को देख कर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई – अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की मुँह से निकल पड़ा – अपरुप-रुप! …खेतों, मैदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुंदरता! … Read more

पुरानी कहानी : नया पाठ | फणीश्वरनाथ रेणु

पुरानी कहानी : नया पाठ | फणीश्वरनाथ रेणु

पुरानी कहानी : नया पाठ | फणीश्वरनाथ रेणु – Purani kahani : naya path पुरानी कहानी : नया पाठ | फणीश्वरनाथ रेणु बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन – तूफान – उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के … Read more

एक आदिम रात्रि की महक | फणीश्वरनाथ रेणु

एक आदिम रात्रि की महक | फणीश्वरनाथ रेणु

एक आदिम रात्रि की महक | फणीश्वरनाथ रेणु – Ek Aadim Ratri Ki Mahak एक आदिम रात्रि की महक | फणीश्वरनाथ रेणु …न …करमा को नींद नहीं आएगी। नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी … Read more