सॉनेट – 2 | नामवर सिंह

सॉनेट – 2 | नामवर सिंह

सॉनेट – 2 | नामवर सिंह सॉनेट – 2 | नामवर सिंह दोस्त, देखते हो जो तुम अंतर्विरोध-सामेरी कविता कविता में, वह दृष्टि दोष है। यहाँ एक ही सत्य सहस्र शब्दों में विकसारूप-रूप में ढला एक ही नाम, तोष है। एक बार जो लगी आग, है वही तो हँसीकभी, कभी आँसू, ललकार कभी, बस चुप्पी। … Read more

सॉनेट – 1 | नामवर सिंह

सॉनेट – 1 | नामवर सिंह

सॉनेट – 1 | नामवर सिंह सॉनेट – 1 | नामवर सिंह बुरा जमाना, बुरा जमाना, बुरा जमानालेकिन मुझे जमाने से कुछ भी तो शिकवानहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आनाऐसे युग में जिसमें ऐसी ही बही हवा गंध हो गई मानव की मानव को दुस्सहशिकवा मुझ को है जरूर लेकिन वह तुमसे … Read more

मँह-मँह बेल | नामवर सिंह

मँह-मँह बेल | नामवर सिंह

मँह-मँह बेल | नामवर सिंह मँह-मँह बेल | नामवर सिंह मँह-मँह बेल कचेलियाँ, माधव माससुरभि-सुरभि से सुलग रही हर साँसलुनित सिवान, सँझाती, कुसुम उजासससि-पांडुर क्षिति में घुलता आकास फैलाए कर ज्यों वह तरु निष्पातफैलाए बाँहें ज्यों सरिता वातफैल रहा यह मन जैसे अज्ञातफैल रहे प्रिय, दिशि-दिशि लघु-लघु हाथ!

फागुनी शाम | नामवर सिंह

फागुनी शाम | नामवर सिंह

फागुनी शाम | नामवर सिंह फागुनी शाम | नामवर सिंह फागुनी शामअंगूरी उजासबतास में जंगली गंध का डूबना ऐंठती पीर मेंदूर, बराह-सेजंगलों के सुनसान का कूँथना। बेघर बेपरवाहदो राहियों कानत शीशन देखना, न पूछना। शाल की पँक्तियों वालीनिचाट-सी राह मेंघूमना घूमना घूमना।

पारदर्शी नील जल में | नामवर सिंह

पारदर्शी नील जल में | नामवर सिंह

पारदर्शी नील जल में | नामवर सिंह पारदर्शी नील जल में | नामवर सिंह पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवालचाँद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर तालक्या पता था, किंतु, प्यासे को मिलेंगे आजदूर ओंठों से, दृगों में संपुटित दो नाल।

नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह

नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह

नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह नहीं बीतती साँझ | नामवर सिंह दिन बीता,पर नहीं बीतती,नहीं बीतती साँझ! नहीं बीतती,नहीं बीतती,नहीं बीतती साँझ! ढलता-ढलता दिनदृग की कोरों से ढुलक न पाया मुक्त कुंतले!व्योम मौन मुझ पर तुम-सा ही छाया मन में निशि हैकिंतु नयन सेनहीं बीतती साँझ! सूनेपन का अति मन में वन कोलाहल मँडरायासुने … Read more

नभ के नीले सूनेपन में | नामवर सिंह

नभ के नीले सूनेपन में | नामवर सिंह

नभ के नीले सूनेपन में | नामवर सिंह नभ के नीले सूनेपन में | नामवर सिंह नभ के नीले सूनेपन मेंहैं टूट रहे बरसे बादरजाने क्यों टूट रहा है तन! वन में चिड़ियों के चलने सेहैं टूट रहे पत्ते चरमरजाने क्यों टूट रहा है मन! घर के बर्तन की खन-खन मेंहैं टूट रहे दुपहर के … Read more

कोजागर | नामवर सिंह

कोजागर | नामवर सिंह

कोजागर | नामवर सिंह कोजागर | नामवर सिंह कोजागरदीठियों की डोर-खिंचा(उगते से) इंदु का आकाशदीप-दोल चढ़ा जा रहा। गोरोचनी जोन्ह पिघली-सीबालुका का तट, आह, चंद्रकांतमणि-सा पसीज-सा रहा। साथ हमनख से विलेखते अदेखते सेमौन अलगाव के प्रथम का बढ़ा आ रहा। अरथ-उदास में, कपास-मेघ जा रहा। नीर हटता-साक्लिन्न तीर फटता-सा गिराकिंतु मूढ़ हियरा, तुझे क्या हुआ … Read more

कभी जब याद आ जाते | नामवर सिंह

कभी जब याद आ जाते | नामवर सिंह

कभी जब याद आ जाते | नामवर सिंह कभी जब याद आ जाते | नामवर सिंह नयन को घेर लेते घन,स्वयं में रह न पाता मनलहर से मूक अधरों परव्यथा बनती मधुर सिहरनन दुःख मिलता न सुख मिलतान जाने प्राण क्या पाते! तुम्हारा प्यार बन सावन,बरसता याद के रसकनकि पाकर मोतियों का धनउमड़ पड़ते नयन … Read more

उनये उनये भादरे | नामवर सिंह

उनये उनये भादरे | नामवर सिंह

उनये उनये भादरे | नामवर सिंह उनये उनये भादरे | नामवर सिंह उनये उनये भादरे बरखा की जल चादरेंफूल दीप से जलेकि झुरती पुरवैया की याद रेमन कुएँ के कोहरे-सा रवि डूबे के बाद इरे। भादरे। उठे बगूले घास मेंचढ़ता रंग बतास मेंहरी हो रही धूपनशे-सी चढ़ती झुके अकास मेंतिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास … Read more