मात्र रुई हूँ मैं | मनोज तिवारी मात्र रुई हूँ मैं | मनोज तिवारी रुई मात्र रुई हूँ मैं धुनिया से कहा उसने लाख-लाख बार तुम धुनों मुझे विछिन्न कर दो रेशे-रेशे फिर भी माघ के पाले में ठिठुरते तुम्हारे बच्चों को गरमाई दूँगी घुप्प अँधेरी रात में दीये की बाती बन रोशनी दूँगी क्योंकि मैं तो मात्र रुई हूँ।
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