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रतजगा काजल | मालिनी गौतम

रतजगा काजल | मालिनी गौतम रतजगा काजल | मालिनी गौतम समय के बिखरे हुए हर ओर निर्मम पलटीसता है मन कि जैसेसुआ कोई चुभ गया हैओढ़ पंखों का दुशालाक्यों हुई गुमसुम बया हैइन सवालों के कहीं मिलते नहीं हैं हल एक हाँड़ी आँच परसंबंध पल-पल जाँचती हैअधपके-से सूत्र सबबेचैन होकर ताकती हैगगन छूने को धुआँ […]