हुईं मिठबोली हवाएँ | कुमार रवींद्र हुईं मिठबोली हवाएँ | कुमार रवींद्र हँसे बच्चेहुईं मिठबोली हवाएँ। आखिरी तारा सिराकररात सोईधूप ने चूनर सुनहरीनदी के जल में भिगोईघाट परफिर कही साधू ने कथाएँ। उड़े पंछीरोशनी के पंख खोलेकिसी मछुइन नेसगुन के बोल बोलेदेख उसकोइंद्रधनुषी हो गई सारी दिशाएँ। किसी कनखी नेअलख ऋतु की जगाईपत्तियों ने दीछुवन-सुख […]
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सुनो तो जरा | कुमार रवींद्र
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विकट हैं दिन | कुमार रवींद्र
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एक धूप की किरण | कुमार रवींद्र
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