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मांस, मिट्टी और माया | ख़ालिद फ़रहाद धारीवाल

मांस, मिट्टी और माया | ख़ालिद फ़रहाद धारीवाल – Mans-Mitti-Aur-Maya मांस, मिट्टी और माया | ख़ालिद फ़रहाद धारीवाल मांस – नाखून से अलग हो चुके के लिए भी उसका लहू जोश क्यों मारता है? मिट्टी – जहाँ फिर कभी नहीं लौटना, ख्वाबों में वहाँ क्यों घूमते रहते हो? माया – सुख सुविधाएँ देती है तो […]