सिंहवाहिनी | कविता

सिंहवाहिनी | कविता

सिंहवाहिनी | कविता – Sinhavahini सिंहवाहिनी | कविता वह एक श्यामलवर्णी क्रमशः अधेड़ावस्था की ओर अग्रसर स्त्री थी और वे एक गौरवर्ण अधेड़ पुरुष। उसकी उम्र चालीस के आसपास और वे पचपन के करीब-करीब। चौंकिए नहीं, उम्र के इस अंतर पर तो कदापि नहीं। ऐसी शादियाँ उस समय के समाज में सामान्य ही मानी जाती … Read more

लौट आना ली | कविता

लौट आना ली | कविता

लौट आना ली | कविता – Laut Aana Li लौट आना ली | कविता वह एक उदास सी शाम थी। धुआँई सी पीली। दूर क्षितिज में गुम होता एक नन्हा नारंगी शावक आसमान की गर्भ से सरक रहा था चुपचाप। आसमान की देह निचुड़ कर साँवली हो गई थी, उदास, कमजोर, और बेजार। मैं चीखने-चीखने … Read more

मध्यवर्ती प्रदेश | कविता

मध्यवर्ती प्रदेश | कविता

मध्यवर्ती प्रदेश | कविता – Madhyavarti Pradesh मध्यवर्ती प्रदेश | कविता जाते-जाते उसे लगा कि उसकी यह कोशिश भी जाया गई। कोशिशें यूँ भी बेकार जाने के लिए ही होती हैं। बेकार होते-होते कहीं कोई साकार हुई तो हुई… हुई तो समझो सब नकार भी सार्थक हो लिया। पर इस बार उसमें इतनी हिम्मत नहीं … Read more

बावड़ी | कविता

बावड़ी | कविता

बावड़ी | कविता – Bavadi बावड़ी | कविता सीढ़ीदर सीढ़ी उतरती मैं हाँफती हूँ। दिन में भी ऐसा घुप्प अँधेरा कि उँगलियों को उँगलियाँ न दिखाई दें… कब तक, आखिर कब तक चलती रहूँगी इस तरह… किस सफर में हूँ मैं कि दहशत है – रगो रेशे में। अब आखिर कहाँ जाना है… कितना भीतर… … Read more

पत्थर, माटी, दूब… | कविता

पत्थर, माटी, दूब... | कविता

पत्थर, माटी, दूब… | कविता – Patthar-mati-dub पत्थर, माटी, दूब… | कविता मेरे हाथों में एक कागज है, कागज में आड़ी-तिरछी रेखाओं में छिपा कोई अक्स। ठीक उसकी ही तरह, हो कर भी साफ-साफ नहीं दिखता। पिता से ही आई है यह आदत मुझ तक। पिता जब भी खाली होते यानी मूर्तियाँ न बनाते होते, … Read more

नेपथ्य | कविता

नेपथ्य | कविता

नेपथ्य | कविता – Nepathya नेपथ्य | कविता उसे पल भर को लगा जैसे वह बचपन के मेलेवाली बड़ी-सी चकरी में बैठा है और पेट में गुदगुदी जैसी मच रही है बेतरह। कुछ उठ रहा है घुमेड़ की तरह पर यह सब कुछ बिल्कुल पल भर के लिए था। पल भर बाद सबकुछ थिर हो … Read more

नदी जो अब भी बहती है | कविता

नदी जो अब भी बहती है | कविता

नदी जो अब भी बहती है | कविता – Nadi Jo Ab Bhi Bahati Hai नदी जो अब भी बहती है | कविता डॉक्टर अब भी हतप्रभ है और हम चुप। ऐसी स्थिति में इतना भावशून्य चेहरा अपने बीस साला कैरिअर में शायद उसने पहली बार देखा है। हम चुप्पी साधे हुए उसके चैंबर से … Read more

धूल | कविता

धूल | कविता

धूल | कविता – Dhul धूल | कविता ‘झाड़ो-बुहारो कोने में जा सिमटेगी / फेंक दो बाहर, परवाह नहीं / पुनः पुनः आएगी / धो कर सोचोगे आँखों से निकल गई किरकिरी, पर आँखों की ललाई में वह होगी लगातार / पछवा हवा के साथ दर्द भी जागता है पुराना और धूल भी हमला बोलती … Read more

तमाशा | कविता

तमाशा | कविता

तमाशा | कविता – Tamasha तमाशा | कविता पहले तीन दिनों की तरह उस दिन भी तमाशा के शो के शुरू होने के पूर्व ही उसके सारे टिकट बिक चुके थे। पर आगे जो कुछ भी हुआ था वह पहले दिनों की तरह नहीं था। घेराबंदी तीन तरफ से थी। आवाजें चहुँ दिश से घेरती, … Read more

जायका | कविता

जायका | कविता

जायका | कविता – Jayaka जायका | कविता यह शाम मेरे इंतजार की थी, पिछली कई साँझों जैसी ही। इंतजार की घड़ियों जितनी ही धीमी, उदास, बेरौनक। यह शाम बिताए नहीं बीत रही थी। यह शाम भी धीरे-धीरे रात में तब्दील हो रही थी। बाजार की गहमा-गहमी अब कमने लगी थी। पहले नौ बजे थे … Read more