भटकते रास्ते | डॉ. भारत खुशालानी
भटकते रास्ते | डॉ. भारत खुशालानी भटकते रास्ते | डॉ. भारत खुशालानी कैसे करूँ मैं उसकी पैरवीजिसके पास मैं खुद हूँ गिरवीमेरे पास नौकरी थीयह बात सही नहीं थीकैदखाने में बंद थाईटों से चुनी हुई दीवार की तरह तहबंद थाव्यवस्था का गुलाम थान दिन में चैन न रात में आराम थादिन-ब-दिन पिस रहा थाबेमतलब घिस … Read more