समझ | आभा बोधिसत्व
समझ | आभा बोधिसत्व समझ | आभा बोधिसत्व वह जब तृप्त हो गयाउसने पूछा क्यों देती हो दूध,क्यों सेती हो अंडे मैं क्या करतीकुछ सूझा नहींऐसे में औचकमैंने गांधी के तीन बंदर का रूप लियाएक साथ जो समय की माँग थीअब वह मक्खियाँ निगल रहा थामैं देख रही थी उसकीस्वार्थ की सिद्धि