ताप हरो | माहेश्वर तिवारी ताप हरो | माहेश्वर तिवारी सूरज ओताप हरो जलते हैंखरगोशों केनन्हे पाँवपेड़ों कीटहनियों मेंसिमटी है छाँवबादल केफूल झरो दुखती हैकस्तूरी हिरनों कीआँखहंसों कीझुलस गई हैगोरी पाँखअब तोऐसा न करो